अनुमंडल अस्पताल का सिस्टम बीमार, इलाज नहीं ऑपरेशन की जरूरत

अनुमंडल अस्पताल का सिस्टम बीमार, इलाज नहीं ऑपरेशन की जरूरत

धीरेन्द्र चौबे

नगर ऊंटारी अनुमंडल अस्पताल का सिस्टम ही बीमार है। अस्पताल गंभीर और जटिल बीमारी से ग्रसित है। जिस अस्पताल में लकवा जैसे गंभीर बीमारी के मरीज ठेले पर लादकर लाये जायें और वापस जायें, जहां मानसिक दिव्यांग महिला के जख्म की ड्रेसिंग अस्पताल के बेड पर होने के बजाय अस्पताल के बाहर कूड़े के ढेर पर हो, उस अस्पताल के सिस्टम को स्वस्थ कोई कैसे मान सकता है ?

पिछले 10 फरवरी की शाम लकवाग्रस्त एक मरीज को उनके परिजन ठेले से उन्हें अस्पताल लेते गये, जब अस्पताल से उन्हें छुट्टी दी गयी तो अस्पताल प्रबंधन ने उन्हें ठेले के बजाय एम्बुलेंस से वापस घर भेजवाना मुनासिब नहीं समझा।

अस्पताल प्रबंधन के इस अमानवीय कृत्य से वह मरीज नहीं पूरा हेल्थ सिस्टम ही ठेले पर नजर आया। इसके 24 घंटे के भीतर मानवता को शर्मसार करने की घटना सामने आयी। 11 फरवरी की शाम में गंभीर रूप से जख्मी हालत में अस्पताल लायी गयी मानसिक दिव्यांग महिला का अस्पताल के बाहर जेनरेटर के बगल में गंदे जगह पर बिठाकर जख्म की ड्रेसिंग की गयी।

 इस कृत्य महिला का जख्म नहीं अस्पताल का सिस्टम सड़ा नजर आया। दोनों घटनाएं इस बात के प्रमाण हैं कि अस्पताल का पूरा सिस्टम ही बीमार है, जिसके इलाज की नहीं ऑपरेशन की जरूरत है। जिसके लिये अब निर्णायक प्रयास जरूरी है नहीं तो अनुमंडल अस्पताल उद्देश्यहीन बना रहेगा। इस बीमारी की जड़ अस्पताल में वर्षों से जमी डीएस डॉ सुचित्रा हैं। जिनका सिस्टम पर कोई कमांड नहीं है। वे नगर ऊंटारी अनुमंडल अस्पताल से कहीं जाना नहीं चाहतीं। यहां से ट्रांसफर होने के बाद कुछ माह में वापस उनकी पोस्टिंग हो जाती है। विगत वर्ष 30 जुलाई को स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार उनकी पोस्टिंग पलामू जिले के सीएचसी विश्रामपुर में करते हुये प्रतिनियोजन सदर अस्पताल गढ़वा में हुई थी।

 लेकिन कमाल हो गया विगत 20 जनवरी को जिले के सीएस ने पलामू जिले में पोस्टेड और गढ़वा जिले में प्रतिनियोजित डॉ सुचित्रा का पुनः प्रतिनियोजन अनुमंडल अस्पताल नगर ऊंटारी में डीएस के पद पर कर दिया। डीएस के योगदान देते पुराने कॉकस सक्रिय हो गये। सब जैसे तैसे चलने लगा, सिस्टम में फिर जड़ता आ गयी और पुरानी बीमारी ने अस्पताल को फिर से जकड़ लिया।

 वर्तमान प्रभारी डीएस डॉ सुचित्रा का पुनः प्रतिनियोजन जांच का विषय है। पूर्व के कार्यकाल में विगत वर्षों में अस्पताल में लापरवाही से मौत के साथ साथ सरकारी राशि की बंदरबांट के पुख्ता प्रमाण मिले हैं, जो समय समय पर समाचार पत्रों की सुर्खियां रहीं हैं।

लेकिन स्पष्टीकरण और जांच के नाम पर कागजी खानापूर्ति कर मामले की लीपापोती की जाती रही है। पिछले कई वर्षों से अस्पताल में सरकारी राशि के आवंटन और खर्च की जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराने पर बहुत बड़ा घोटाला उजागर हो सकता है।