क्षेत्रीय दलों के खाते में गई गिरिडीह लोकसभा सीट का सिकंदर कौन?

क्षेत्रीय दलों के खाते में गई गिरिडीह लोकसभा सीट का सिकंदर कौन?

बंशीधर न्यूज

गिरिडीह: झारखंड की गिरिडीह लोकसभा सीट राज्य की प्रमुख संसदीय सीटों में शुमार है। इसमें गिरिडीह, धनबाद और बोकारो इन तीन जिलों की छह विधानसभा सीटें समाहित हैं, जिनमें तीन पर झारखंड मुक्ति मोर्चा, एक-एक पर कांग्रेस, भाजपा और आजसू का कब्जा है। इस सीट पर 25 मई को छठे चरण में मतदान होगा। इस बार कुल 18 लाख एक हजार 845 महिला-पुरुष मतदाता मत का प्रयोग करेंगे।

मतदाताओं को पक्ष में करने के लिए एनडीए और इंडी गठबंधन सहित निर्दलीय प्रत्याशी भी कड़ी मेहनत कर रहे हैं लेकिन मतदाताओं के बीच कहीं खामोशी है तो कहीं आक्रोश। वर्ष 1952 से 2019 तक गिरिडीह लोस सीट पर कुल 17 बार चुनाव हुए है, जिसमें पांच बार कांग्रेस, पांच बार भाजपा और तीन बार झामुमो सहित अन्य क्षेत्रीय दलों के सांसद निर्वाचित हुए हैं।

वर्ष 2019 के चुनाव में झारखंड में भाजपा की सहयोगी आजसू के चन्द्रप्रकाश चौधरी ने झामुमो के जगरनाथ महतो को 02 लाख 48 हजार मतों के अंतर से पराजित कर जीत दर्ज की थी। इस बार भी आजसू के चन्द्र प्रकाश चौधरी, झामुमो के मथुरा महतो और निर्दलीय जयराम महतो समेत कुल 16 प्रत्याशी चुनाव मैदान में है। गिरिडीह लोस क्षेत्र में जातीय समीकरण की बात की जाय तो मुस्लिम, कुर्मी, आदिवासी, वैश्य और अगड़ी जाति के मतदाताओं की निर्णायक भूमिका रही है।

अबतक हुए चुनावों में क्षेत्र की जनता ने सबसे अधिक भाजपा के रविन्द्र पाण्डेय को पांच बार और भाजपा के ही रामदास सिंह को दोबार सांसद बनाया है। हालांकि, 1952 के बाद कांग्रेस के बड़े नेता और बिहार के मुख्यमंत्री रहे विन्देश्वरी दूबे के अलावा प्रदेश प्रमुख रहे डॉ. सरफराज अहमद सरीखे नेता इस सीट से जीते लेकिन पिछले दो दशकों से गठबंधन के कारण कांग्रेस ने किसी को टिकट नहीं दिया।

वर्ष 2019 से भाजपा ने भी कांग्रेस की तरह सहयोगी आजसू के लिये यह सीट छोड़ दी है। दोनों राष्ट्रीय दलों की उदारवादी नीति के कारण गिरिडीह संसदीय सीट क्षेत्रीय दलों की होकर रह गई है। वर्ष 2019 के बाद 2024 के चुनाव में भी मुख्य मुकाबला झामुमो के मथुरा महतो और आजसू के सीपी चौधरी के बीच होता दिख रहा है लेकिन इन दोनों के बीच निर्दलीय युवा प्रत्याशी जयराम महतो इस लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने में जुटे हैं।

युवाओं के बीच टाईगर के नाम से लोकप्रिय जयराम महतो ने झारखंड में क्षेत्रीय और स्थानीय मुद्दों को लेकर हाल में झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति का गठन किया है, जिसे एक नए सियासी उभार के तौर पर देखा जा रहा है। स्थानीय नियोजन नीति और भाषा समेत अन्य विभिन्न मुद्दों को लेकर जयराम महतो ने उत्तरी और दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल के विभिन्न जिलों में आंदोलन चला रखा है, जिसमें उन्हें युवाओं का जबरदस्त समर्थन हासिल है।

अब देखना होगा कि चुनाव में उन्हें कितना समर्थन हासिल होता है। वर्ष 2019 की मोदी लहर में विजयी आजसू के सीपी चौधरी को 06 लाख 48 हजार 277 वोट मिले थे जबकि मुख्य प्रतिद्वंद्वी झामुमो के जगरनाथ महतो को 03 लाख 99 हजार 930 वोट प्राप्त हुए थे। इस बार भी क्षेत्र की एक बड़ी आबादी झुकाव पीएम मोदी के पक्ष में दिखायी दे रहा है लेकिन बीते पांच सालों में क्षेत्रीय विकास की उपेक्षा से लोगों में खासी नाराजगी भी है।

क्या कहते हैं उम्मीदवार आजसू के उम्मीदवार

सीपी चौधरी चुनाव में जीत का दावा करते हुए कहते हैं कि बीते पांच सालों में उन्होंने गिरिडीह क्षेत्र की कई समस्याओं का सामाधान किया है और आगे भी वे क्षेत्र की समस्याओं को लेकर सक्रिय रहेंगे। झामुमो के मथुरा महतो का कहना है कि झामुमो अदिवासी-मूलवासियों के जीवन स्तर में सुधार लाने को लेकर कृत संकल्पित रही है।

पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन सरकार के कार्यकाल का समावेशी विकास इसका गवाह है। उन्होंने कहा कि क्षेत्र की जनता इसबार बदलाव के मूड में है। इन सभी दावों के बीच चार जून को आने वाले चुनाव नतीजों से ही स्पष्ट होगा कि क्षेत्र की जनता का आशीर्वाद किसे मिला।