व्यक्ति में संयम, परिवार में सुमति, समाज में सद्भाव व राष्ट्र में शांति की स्थापना का संदेश देता है रामचरितमानस : मारुति किंकर

व्यक्ति में संयम, परिवार में सुमति, समाज में सद्भाव व राष्ट्र में शांति की स्थापना का संदेश देता है रामचरितमानस : मारुति किंकर

एक सप्ताह से उंटारी शिव संपत धाम परिसर में जगतगुरु रामानुजाचार्य मारुति किंकर जी महाराज का संगीतमय प्रवचन

सुबह से देर रात तक यज्ञशाला की प्रदक्षिणा व प्रचवन में लग रही है श्रद्धालु भक्तों की भीड़

मंगलवार को पूर्णाहुति के साथ सम्पन्न होगा शिव संपत धाम परिसर में चल रहा 25 कुंडीय श्री लक्ष्मीनारायण महायज्ञ

विश्रामपुर : पलामू जिले के उंटारी रोड प्रखंड मुख्यालय स्थित उस क्षेत्र में आस्था का कर चर्चित केंद्र बन चुका शिव संपत धाम परिसर में भारतवर्ष के महान मनीषी पूज्य संत श्री त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के परम कृपा पात्र प्रातः स्मरणीय श्री जीयर स्वामी जी महाराज के सान्निध्य में 25 कुंडीय श्री लक्ष्मीनारायण महायज्ञ 17 अक्टूबर से चल रहा है जिसका समापन मंगलवार को पूर्णाहुति के साथ संपन्न होगा। महायज्ञ में देश के कई हिस्सों से विद्वान संत पधार कर प्रचवन कर रहे हैं। सुबह से ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु देर शाम तक यज्ञशाला की परिक्रमा कर रहे हैं। प्रवचन में भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है।

काशी से पधारे जगतगुरु रामानुजाचार्य मारुति किंकर जी महाराज ने कहा कि श्रीरामचरितमानस व्यक्ति में संयम, परिवार में सुमति, समाज में सद्भाव और राष्ट्र में शांति की स्थापना करने का संदेश देता है। उन्होंने कहा कि श्रीरामचरितमानस में दो विरोधी विचारधाराएं हैं। एक तरफ श्रीराम का चरित्र और दूसरी तरफ रावण का चरित्र। श्रीराम के चरित्र में विद्या की प्राप्ति है और रावण के चरित्र में अविद्या का दर्शन होता है। उन्होंने कहा कि विद्या वह है जो धर्म के मार्ग पर अग्रसर कराते हुए भविष्य को उज्ज्वल बना देता है। उसी तरह अविद्या वह है जो अधर्म के मार्ग पर अग्रसर कराकर भविष्य को अंधकारमय बना देता है।

किंकर जी महाराज ने आगे कथा को विस्तार करते हुए कहा कि विद्या के प्रति रामजी का कार्य उनके व्यवहार, आचरण में दिखाई देता है। उन्होंने मानस के प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि "" प्रातः काल उठी के रघुनाथा, मातु पिता गुरु नावही माथा। "जबकि अविद्या के प्रति रावण का कार्य" मानत ही मातु पिता नहीं देवा, साधु सन करवाही सेवा।

विद्या के प्रति रामजी का कार्य" जेहि विधि सुखी होइहें पुरलोगा, करहिं कृपानिधि सोई संजोगा। जबकि अविद्या के प्रति रावण इसके विपरीत आचरण करता था।-" जेहि विधि होई धर्म निर्मूला, सो सब करही वेद प्रतिकूला। उन्होंने कहा कि रामचरितमानस में श्रीराम व रावण में यही मूल अंतर था। महायज्ञ में स्वामी अयोध्यानाथ जी महाराज, स्वामी वैकुंठनाथ जी महाराज समेत कई अन्य विद्वान संत प्रवचन कर रहे हैं।