कैडर बेस्ड भाजपा कैडर लेस्ड होने के कगार पर

कैडर बेस्ड भाजपा कैडर लेस्ड होने के कगार पर

नीलू चौबे

भवनाथपुर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा अब तक के सबसे खराब दौर से गुजर रही है। अंदरखाने से मिल रही खबरों के मुताबिक क्षेत्र में सदस्यता का हाल बहुत बुरा है। कहा जा रहा है कि कैडर बेस्ड भाजपा कैडर लेस्ड होने के कगार पर है। सिर्फ सदस्यता ही नहीं क्षेत्र में पार्टी की ओर से निर्धारित राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम तिरंगा यात्रा और राज्यव्यापी कार्यक्रम धरना प्रदर्शन पर भी बुरा असर पड़ा है।

 जानकारी के अनुसार भवनाथपुर विधानसभा क्षेत्र के 11 मंडलों में से श्री बंशीधर नगर मंडल को छोड़ 10 मंडलों में पार्टी की ओर से चलाये गये सदस्यता अभियान में अपेक्षित सदस्यता ही नहीं हुई है। ऐसा बुरा हाल उस पार्टी का है, जिसकी सदस्यता के लिये चलाये गये अभियान को सफल बनाने के लिये गांव गांव में टोलियां घूमती थी। लोग स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर निष्ठावान कार्यकर्ता के तौर पर पार्टी को अपनी सेवाएं देते थे। मंडल और जिला स्तर पर संगठनात्मक चुनाव में मजिस्ट्रेट और पुलिस बल की तैनाती होती थी, लेकिन दौर बदला दूसरे दलों से नेताओं की एंट्री ने कैडर बेस्ड भाजपा की राजनीतिक धारा को ही पूरी तरह बदल दिया।

दूसरे दलों से आये कार्यकर्ताओं और नेताओं ने भाजपा के पुराने एवं समर्पित कार्यकर्ताओं को हाशिये पर धकेल दिया। उपेक्षित भाजपा कार्यकर्ताओं ने पार्टी से पूरी तरह किनारा कर लिया। लिहाजा भवनाथपुर में पार्टी की नैया आयातित कार्यकर्ताओं और नेताओं के भरोसे हो गई है। पार्टी के पुराने निष्ठावान और समर्पित कार्यकर्ताओं की मानें तो पार्टी की बुरी स्थिति के लिये दो प्रमुख कारण हैं। पहला भाजपा में आयातित नेताओं और कार्यकर्ताओं का दखल और दूसरा धरातल पर काम के बजाये सिर्फ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उनकी सक्रियता।

बताते हैं कि सबसे पहले 2014 में वर्तमान विधायक अनंत प्रताप देव उर्फ छोटे राजा एवं 2019 में पूर्व विधायक भानू प्रताप शाही की एंट्री हुई। दोनों ने चुनाव के ऐन मौके पर पार्टी ज्वाईन की। चुनाव में अनंत प्रताप देव को हार का सामना करना पड़ा था। जबकि भानू प्रताप शाही चुनाव जीतने में कामयाब हो गये थे। हालांकि दोनों ने भाजपा ज्वाईन करने के बाद अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को पार्टी में सभी स्तरों पर सेट किया।

बूथ स्तर से मंडल स्तर होते हुये जिला स्तर तक पुराने कैडर, जुझारू और समर्पित कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर आयातित लोगों को जिम्मेदारी मिलने से पार्टी में नये और पुराने कार्यकर्ताओं और नेताओं में लगभग 10 वर्षों में संतुलन नहीं बन सका। फलतः क्षेत्र में संगठनात्मक रूप से मजबूत भाजपा अब तक के सबसे खराब दौर से गुजर रही है। सदस्यता का सम्मानजनक लक्ष्य हासिल करने के लिये पुराने नेताओं और कार्यकर्ताओं से संपर्क साधा जा रहा है, मान मनौव्वल हो रहा है। हालांकि इसका कितना असर पड़ेगा, अनुमान लगाना कठिन है। बहरहाल अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में भाजपा भवनाथपुर में अपने पुराने तेवर में वापसी कर पाती है या नहीं।