मन को पवित्र कर लेना ही गंगा स्नान है : देवनारायणाचार्य

मेदिनीनगर : स्वामी देवनारायणाचार्य ने कहा कि भगीरथ से पहले उनके पिता दिलीप और उनके दादा अंशुमान भी मां गंगा को पृथ्वी पर लाने का प्रयास किया था। पूरी जीवन तपस्या करते रहे। लेकिन वे सफल नहीं हो सके। आखिरकार भगीरथ इस कार्य में सफल हुए। इसके बाद भगवान शिव की कृपा से मां गंगा अपनी वेग को नियंत्रित कर धरती पर अवतरित हुई। जो मां गंगा इस लोक के लिए मुक्तिदायिनी बनी।
मां गंगा हर पाप का नाश करने वाली है। गंगा मईया कालों के काल महाकाल के सिर पर विराजती हैं। फिर भला उनकी अवहेलना तो यमराज भी नहीं कर सकता। वे पंजरी खुर्द में श्रीमद भागवत कथा में प्रवचन कर रहे थे। करीब एक महीने से यहां कथा प्रवचन कर रहे स्वामी देवनारायणाचार्य ने कथा के क्रम में इक्ष्वाकु वंश की चर्चा करते हुए इस संदर्भ का उल्लेख किया।
उन्होंने कहा कि मां गंगा मुक्तिदायिनी हैं। वो शिव और नारायण दोनों की प्रिय हैं। उन्होंने विष्णु गंगा और शिव गंगा की भी चर्चा की। कथा के क्रम में उन्होंने कहा कि भगवान के घर में जो व्यक्ति अपनी हाजिरी लगाता है, वह भगवान का भाजन बन जाता है। ईश्वर का पात्र बन जाता है। भगवान उसकी हर जरूरत पूरी करते हैं।
उन्होंने कहा कि भगवान की भक्ति करने और उन्हें जपने वाला हर व्यक्ति हमारी श्रद्धा और भक्ति का पात्र है। जो ईश्वर को अपना मानता है, वह ईश्वर का हो जाता है। इसलिए वह हर व्यक्ति हमारे लिए ईश्वर का रूप है।
स्वामी देवनारायणाचार्य ने कहा कि गंगा स्नान का मतलब न सिर्फ तन की शुद्धि है, बल्कि मन को साफ करने से भी है। गंगा में डुबकी लगाने से नहीं बल्कि डुबकी लगाने से पहले मन को पवित्र कर लेना ही गंगा स्नान है। केवल भीड़ बनकर गंगा स्नान करने से न तो मन की शुद्धि होगी और न ही मन की इच्छा फलीभूत होगी।