पुरुषार्थी और कर्मठशील व्यक्ति को अंतिम क्षण तक कर्म का त्याग नहीं करना चाहिये जीयर स्वामी

पुरुषार्थी और कर्मठशील व्यक्ति को अंतिम क्षण तक कर्म का त्याग नहीं करना चाहिये जीयर स्वामी

बंशीधर न्यूज

मेदिनीनगर : सिंगरा में चल रहे श्री लक्ष्मीनारायण महायज्ञ के चतुर्थ दिन श्रीमद्भागवत कथा-प्रवचन के दौरान श्री लक्ष्मीप्रपन्न जीयर स्वामीजी महाराज ने कहा कि सृष्टि में कोई भी व्यक्ति बिना कर्म किये नहीं रह सकता। शास्त्रों में मुख्य रूप से तीन प्रकार के कर्म बताये गये हैं जिनमें एक होता है क्रियमाण कर्म, जिसका फल इसी जीवन में हमें तुरंत प्राप्त हो जाता है। दूसरा संचित कर्म, जिसका फल बाद में मिलता है। तीसरा होता है प्रारब्ध कर्म जो व्यक्ति के भाग्य और जीवन का निर्माण करते हैं।

यदि विपरीत परिस्थितियों में भी लोग सुखी रहकर मर्यादा पूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे होते हैं तो इसका श्रेय उनके संचित कर्म को जाता है। स्वामी जी महाराज ने कहा कि अपने विचारों पर नियंत्रण रखो, नहीं तो वह विचार तुम्हारा कर्म बन जाएंगे और अपने कर्माे पर नियंत्रण रखो, नहीं तो वह कर्म तुम्हारा भाग्य बन जाएंगे। पुरुषार्थी और कर्मठशील व्यक्ति को हमेशा अपने कर्म में अन्तिम क्षण तक रहना चाहिये। कर्म का त्याग कभी नहीं करना चाहिये।

भगवान् श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन करते हुये स्वामीजी ने कहा कि द्वारिकापुरी में धन-बल, पद-प्रतिष्ठा, रूप-वैभव, ऐश्वर्य, यश-कीर्ति भी अपूर्व है थी। किसी चीज की कमी नहीं थी। केवल एक चीज की कमी हो गई वह है धर्म, महात्मा, धर्म शास्त्र के वाक्यों पर शब्दों पर अश्रद्धा, अविश्वास हो गई। परिणाम क्या हुआ।

भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा कि मानवीय जीवन में अगर उठन-बैठन, बोल-चाल, खान-पान, रहन-सहन चंचल हो जायेगा या भटक जायेगा तो इसका परिणाम भुगतना ही पड़ेगा, चाहे कोई भी हो, भगवान् का परिवार ही क्यों न हो, उसे भटकने से कोई रोक नहीं सकता इसीलिये व्यक्ति को हमेशा अपनी मर्यादा में रहना चाहिये मर्यादाओं का ख्याल करना चाहिये।