पलामू की राजनीति में आई शून्यता, जनआस्था और विश्वास के प्रतीक थे ददई दुबे

पलामू की राजनीति में आई शून्यता, जनआस्था और विश्वास के प्रतीक थे ददई दुबे

नीलू चौबे

अंतिम सांस तक गरीब एवं मजदूरों की लड़ाई लड़ने वाले पूर्व मंत्री चंद्रशेखर दूबे उर्फ ददई दूबे के निधन से पलामू की राजनीति में शून्यता आ गई है। बिना किसी भेदभाव के हर तबके के लोगों, गरीबों, दलितों और मजदूरों की आवाज अब खामोश हो गई है। पलामू के राजनीतिक इतिहास पर गौर करें तो पूर्व मंत्री एवं प्रख्यात समाजवादी नेता स्व गिरिवर पांडेय एवं पूर्व मंत्री स्व चंद्रशेखर दूबे उर्फ ददई दूबे जैसे व्यक्तित्व के लोग इस क्षेत्र के गरीबों और आम अवाम की मुखर आवाज रहे हैं।

 इन दोनों नेताओं ने अपने संपूर्ण राजनीतिक जीवन को गरीबों, दलितों, शोषितों और मजदूरों के अधिकारों के लिये समर्पित कर दिया। इन नेताओं की विशेषता यह थी कि सड़क से लेकर सदन तक और संघर्ष से लेकर सत्ता तक, हर मंच पर आम जनता की आवाज को बुलंद किया। सादगीपूर्ण जीवन, निर्भीक सोच और आम जनता से गहरा जुड़ाव यही इन दोनों नेताओं की असली पहचान थी। लिहाजा वे सिर्फ जनप्रतिनिधि नहीं, बल्कि जनता की आस्था और विश्वास के प्रतीक बन गये थे।

स्व गिरिवर पांडेय ने भवनाथपुर से बिहार विधानसभा तक और ददई दूबे ने विश्रामपुर से लेकर धनबाद तक जहां-जहां जरूरत पड़ी, वहां-वहां गरीबों और मजदूरों के लिये संघर्ष किया। दोनों नेताओं का जीवन वास्तव में सेवा और संघर्ष की मिसाल रहा है। कड़क और जिद्दी स्वभाव के बावजूद दोनों नेता अपने कार्यकर्ताओं के लिये हमेशा सुलभ एवं समर्पित रहते थे। वे अपने सहयोगियों की समस्याओं को अपनी प्राथमिकता मानते थे और हरसंभव समाधान के लिये तत्पर रहते थे।

कार्यकर्ता जिस उम्मीद के साथ उनके पास आते, उन्हें निराश होकर कभी लौटना नहीं पड़ता था। यही वजह रही कि वे जनता के दिलों में अमिट छाप छोड़ गये। आज जब ददई दूबे हमारे बीच नहीं हैं, तो यह केवल एक व्यक्ति की कमी नहीं है, बल्कि एक विचारधारा, एक आंदोलन, एक जनसंघर्ष की कमी है। उनके निधन से जो रिक्तता उत्पन्न हुई है, उसे भर पाना बेहद कठिन प्रतीत होता है।

उनकी अंतिम यात्रा में उमड़े जनसैलाब ने यह साबित कर दिया कि स्व दुबे न केवल एक राजनेता थे। बल्कि आम जनमानस के बीच एक गहरी छाप छोड़ चुके जननायक थे। उनकी जीवन गाथा आने वाली पीढ़ियों के लिये प्रेरणा स्रोत बनी रहेगी।