दिशोम गुरू का जाना झारखंड के लिये गहरा आघात, इनकी क्षतिपूर्ति संभव नहीं : मिथिलेश ठाकुर

दिशोम गुरू का जाना झारखंड के लिये गहरा आघात, इनकी क्षतिपूर्ति संभव नहीं : मिथिलेश ठाकुर

बंशीधर न्यूज

गढ़वा : झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री राज्यसभा सांसद दिशोम गुरू शिबु सोरेन के निधन पर पूर्व मंत्री झामुमो के केंद्रीय महासचिव मिथिलेश कुमार ठाकुर ने गहरी संवेदन व्यक्त की है। संवेदना व्यक्त करते हुये श्री ठाकुर ने कहा कि हम सबों के बीच से दिशोम गुरू का जाना झारखंड के लिये गहरा आघात है। उनके निधन से हुये क्षति का पूर्ति कर पाना संभव नहीं है। श्री ठाकुर ने कहा कि दिशोम गुरू ने अपना सब कुछ न्योछावर कर झारखंड अलग राज्य की लड़ाई लड़ी।

अंततः इस लड़ाई में उनकी जीत हुई। आज उन्हीं के दम पर झारखंड राज्य खड़ा है। झारखंड ही नहीं पूरा देश युगों युगों तक दिशोम गुरू शिबु सोरेन को याद रखेगा। उनके निधन से देश ने महान क्रांतिकारी नेता खो दिया है। दिशोम गुरू ने लड़कर झारखंड राज्य लिया, अब अलग झारखंड के सपने को उनके पुत्र हेमंत सोरेन के नेतृत्व में पूरा किया जा रहा है। श्री ठाकुर ने कहा कि आज झारखंड में बहुत बड़े खालीपन का एहसास हो रहा है।

उनके निधन से झारखंड को जो क्षति हुई है, उसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता है। श्री ठाकुर ने कहा कि भगवान अपने श्री चरणों में उन्हें स्थान दें। श्री ठाकुर ने कहा कि दिशोम गुरु शिबू सोरेन जी का निधन एक युग, एक विचार, एक आंदोलन, एक पीढ़ी के साहस, संघर्ष और चेतना का अवसान है। उनका निधन झारखंड की आत्मा का एक टुकड़ा खो जाने जैसा है। वो टुकड़ा जो सदियों से उपेक्षा, शोषण और हक की लड़ाई लड़ता आया था। शिबू सोरेन महज एक नेता नहीं थे।

वे झारखंड की मिट्टी से उपजे वह बीज थे, जिसने जल, जंगल, जमीन की रक्षा में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। वे आदिवासी अस्मिता के सबसे सशक्त प्रहरी, पीड़ितों की सबसे मुखर आवाज और मजदूरों के लिये अनथक लड़ने वाले सेनानी थे। शिबू सोरेन जी के पास न कोई दिखावा था, न कोई छल। सादा जीवन, खादी का कुर्ता और गांव की भाषा में बोलने वाला नेता। वे झारखंड के आम आदमी के प्रतीक बन चुके थे। उनके लिये सत्ता कभी लक्ष्य नहीं रही, बल्कि केवल जनहित के लिये एक साधन थी।

1970 के दशक में शिबू सोरेन जी ने आदिवासी किसानों को महाजनी शोषण से मुक्ति दिलाने के लिये धनकटनी आंदोलन शुरू किया। तभी आदिवासी समाज के लोगों को उनमें अपना नेता दिखाई दिया, जो उन्हें सूदखोरों से आजादी दिला सकते थे। इसी आदोलन के दौरान शिबू सोरेन को दिशोम गुरु की उपाधि मिली। आज दिशोम गुरु हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका संघर्ष, दर्शन और विचार हम सबके भीतर जीवित हैं। वे केवल एक पीढ़ी के नेता नहीं थे, वे आने वाली पीढ़ियों की चेतना बन गये हैं।

झारखंड की हर पहाड़ी, हर पगडंडी में उनकी स्मृतियां बसी हुई हैं। आदरणीय शिबू सोरेन जी का जीवन हमें यह सिखाता है कि परिवर्तन सिर्फ नारों से नहीं, समर्पण और संघर्ष से आता है। उनके अधूरे सपनों को पूरा करने के लिये, जल-जंगल-जमीन और पीड़ित-शोषित-वंचितों की रक्षा के लिये हम सदैव प्रतिबद्ध रहेंगे।